वर्चुअल सेक्स फैल रहा है एक बीमारी की तरह, कहीं आप भी तो शिकार नहीं , आजकल सबकुछ डिजिटल हो रहा है। स्कूलकालेज, औफिस, पुलिस स्टेशन, अदालत सबकुछ डिजिटल हो रहे हैं, ठीक इसी प्रकार संबंध भी डिजिटल हो रहे हैं। शादीब्याह के न्योते हों या कोई अन्य खुशखबरी या फिर शोक समाचार सबकुछ ईमेल, व्हाट्सऐप, एसएमएस, ट्विटर या फेसबुक के जरिए दोस्तों और सगेसंबंधियों तक पहुंचाया जा रहा है। मिठाई का डब्बा या खुद कार्ड ले कर पहुंचने की परंपरा धीरेधीरे लुप्त हो रही है।
कुछ ऐसा ही प्रयोग युवकयुवतियों के संबंधों में भी हो रहा है। ऐसे युवकों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जो यौन सुख के लिए वास्तविक सैक्स संबंधों के बजाय डिजिटल सैक्स और औनलाइन पोर्नोग्राफी पर ज्यादा निर्भर हैं। ऐसे युवकों को वास्तविक दुनिया के बजाय आभासी दुनिया के सैक्स में ज्यादा आनंद आता है और ज्यादा आसानी महसूस होती है। इन्हें युवतियों को टैकल करना और उन से भावनात्मक व शारीरिक संबंधों का निर्वाह करना बेहद मुश्किल लगता है, इसलिए ये उन से कन्नी काटते हैं। पढ़ेलिखे और शहरी लोगों में डिजिटल सैक्स की आदत ज्यादा देखी जाती है। मनोवैज्ञानिक इन्हें ‘हौलो मैन’ यानी खोखला आदमी कहते हैं। ऐसे लोगों को वास्तविक यौन सुख या इमोशनल सपोर्ट तो मिल नहीं पाता नतीजतन ये ऐंग्जायटी और डिप्रैशन का शिकार होने लगते हैं और भावनात्मक रूप से टूट जाते हैं।
मेन (डिस) कनैक्टेड की सह लेखिका निकिता कूलोंबे कहती हैं, ‘इंटरनैट युवाओं को अंतहीन नौवेल्टी और वर्चुअल हरमखाने की सुविधा देता है। 10 मिनट में ये यूथ इतनी निर्वस्त्र और सैक्सरत युवतियों को देख लेते हैं, जितनी इन के पुरखों ने ताउम्र नहीं देखी होंगी।’ व्यवहार विशेषज्ञों का कहना है कि डिजिटल युग में कई यूथ ऐसे मिलेंगे जो स्क्रीन पर चिपके रहेंगे और सोशल साइट्स पर तो युवतियों से खूब गुफ्तगू करेंगे, लेकिन वास्तविक दुनिया में उन्हें युवतियों के सामने जाने पर घबराहट होती है और ये अपनी भावनाएं उन के साथ शेयर करने का सही तरीका नहीं ढूंढ़ पाते।
ये युवा फेस टू फेस बात करने के बजाय फेसबुक, व्हाट्सऐप, टैक्स्ट मैसेज या मोबाइल फोन का सहारा लेते हैं। जाहिर सी बात है कि ये युवतियों के सामने नर्वस हो जाते हैं और उन से संबंध बनाने से कतराते हैं। पोर्न से उन्हें तत्काल आनंद और संतुष्टि मिलती है, जबकि वास्तविक दुनिया में सैक्स संबंध बनाने से पहले मित्रता, प्रेम, आत्मीयता या शादीविवाह जरूरी होता है।डिजिटल सैक्स का यह एडिक्शन युवतियों की तुलना में युवकों को अधिक प्रभावित करता है। इस की वजह यह है कि इंटरनैट पोर्न में यौन संबंधों का आनंद उठाते हुए युवकों को ही अधिक दिखाया जाता है।
लगभग हर युवक डिजिटल सैक्स का शौकीन होता है। कुछ युवक इस के इतने अभ्यस्त हो जाते हैं कि उन्हें इस का नशा हो जाता है और वे सामाजिक जीवन से कतराने लगते हैं। उन्हें जो युवतियां मिलती भी हैं उन में वे आकर्षण नहीं ढूंढ़ पाते, क्योंकि उन की ब्रैस्ट या अन्य अंग पोर्न ऐक्ट्रैस जैसे नहीं होते। कई बार घर वालों के कहने या सामाजिक दबाव में आ कर ये शादी तो कर लेते हैं, लेकिन अपनी बीवी से इन की ज्यादा दिन तक पटरी नहीं बैठती, क्योंकि ये अपनी बीवी के साथ सैक्स संबंध बनाते वक्त उस से पोर्न जैसी ऊटपटांग हरकतें और वैसी ही सैक्सुअल पोजिशंस चाहते हैं। कोई भी बीवी यह सब कब तक बरदाश्त कर सकती है? नतीजतन या तो बीवी इन्हें छोड़ देती है या फिर ये खुद ही ऊब कर अलग हो जाते हैं।
व्यवहार विशेषज्ञों के मुताबिक इंटरनैट पर पोर्न साइट्स की बाढ़, थ्रीडी सैक्स गेम, कार्टून सैक्स गेम, वर्चुअल रिएलिटी सैक्स गेम और अन्य तरहतरह की पोर्न फिल्में जिन में एक युवती या युवक को 3-4 लोगों के साथ सैक्स संबंध बनाते हुए दिखाया जाता है, ने युवाओं के दिमाग को बुरी तरह डिस्टर्ब कर के रख दिया है। स्मार्टफोन पर आसानी से इन की उपलब्धता ने स्थिति ज्यादा बिगाड़ दी है। यह स्थिति सिर्फ भारत की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की है। ‘मेन (डिस) कनैक्टेड : हाउ टैक्नोलौजी हैज सबोटेज्ड व्हाट इट मीन्स टू बी मेल’ में मनोविज्ञानी फिलिप जिम्वार्डो ने लिखा है, ‘औनलाइन पोर्नोग्राफी और गेमिंग टैक्नोलौजी पौरुष को नष्ट कर रही है। अलगअलग देशों के 20 हजार से ज्यादा युवाओं पर किए गए सर्वे में हम ने पाया कि आसानी से उपलब्ध पोर्न से हर देश में पोर्न एडिक्टों की भरमार हो गई। यूथ्स को युवतियों के साथ यौन संबंध बनाने के बजाय पोर्न देखते हुए हस्तमैथुन करने में ज्यादा आनंद आता है।’