बांगड़ बताते हैं कि शुरुआत में यहां महिलाएं आने से कतराती थीं। उन्हें लगता इस उम्र में पढ़ना अच्छा नहीं लगेगा। फिर उन्हें जागरूक किया गया और शिक्षा की अहमियत बताई गई। स्कूल की शिक्षक शीतल ने बताया कि जब यहां महिलाएं आती हैं तो वह ब्लैकबोर्ड पर लिखी गई बातें बिलकुल भी नहीं समझती। यहां आने के बाद वह हस्ताक्षर करना शुरू कर देती हैं। योगेंद्र बताते हैं कि यहां महिलाओं की पढ़ाई मराठी और हिंदी वर्णमाला से शुरू कराई जाती है।