आज के समय में शादियों में नाचने वाली महिलाओं को पूरे विश्व में बुरी नज़रों से देखा जाता है। उन्हें वैश्या जैसे नामों से पुकारा जाता है। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इन्हीं महिलाओं को बड़ी ही इज़्ज़त से लोग देखते थे। दुनिया भर में ना जाने कितनी सौंदर्य प्रतियोगितायें होती है जिनमें महिलाये काफी बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। इन प्रतियोगिताओ में अलग अलग मापदंड अपनाये जाते हैं।

प्राचीन भारत के कई हिस्सों में भी इसी तरह की सौंदर्य प्रतियोगिताए बड़े बड़े नगरों में हुआ करती थी। जिसमे नगर ही सुंदर स्त्रियां भाग लेती थी। सबसे सुंदर स्त्री को नगर वधु का ख़िताब दिया जाता था। यह नगर वधु लोगो के लिए मनोरंजन का कार्य करती थी और बदले में मेहनताना लेती थी। एक प्रकार से कहें तो उस समय प्राचीन भारत में वेश्यालयों और इस तरह के दैहिक व्यापर को मान्यता मिली हुयी थी।

नगर वधु का सम्मान रानी के बराबर होता था लेकिन नगर वधु वेश्या होती थी और धनाड्य वर्ग का मनोरंजन करती थी। अपनी प्रस्तुति के लिए नगरवधू का एक रात का मेहनताना काफी अधिक होता था जिसके कारण राजा और धनपति ही मनोरंजन कर सकते थे।

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