उसने अपने एक दोस्‍त की सलाह पर किताबें बेचकर कमाने का फैसला किया। समय की परेशान के कारण उसने रात में बिना किसी झ‍िझक के किताबें बेचने का निर्णय लिया।

रात के समय घर से निकलकर यह काम करने के बारे में प्रिया ने कहा ‘मैं डरती नहीं हूं। ढाबों पर परिवार के साथ लोग आते हैं। पुलिस भी गश्‍त क रती है और अब तो ढाबे वाले मुझे जानते हैं। कुछ बुरे लोगों के कारण घर से निकलना और अपने सपने को पूरा करने के लिए काम करना तो नहीं छोड़ सकती?’ प्रिया ने यह भी कहा ‘देर रात जब घर लौटती हूं तो उस रूट के कई बस ड्राइवर मुझे लिफ्ट दे देते हैं।’ उसके एक दोस्‍त ने कमीशन के आधार पर किताबें बेचने की जगह बताई थी। प्रिया ने उस संगठन से बात की तो उसके बाद वह शाम को क्‍लास के बाद किताबें लेकर पाठकों के पास पहुंचने लगी। वह उल्‍टादंगा में ढाबों के आसपास किताबें बेचती हैं।

 

 

 

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