नाइट शिफ्ट करने वाले सिर्फ आधी ज़िंदगी ही जी पाते हैं , अगर आप भी नाइट शिफ्ट में नौकरी करते हैं, तो जरा संभल जाएं। ताजा शोध में सामने आया है कि लगातार नाइट शिफ्ट करने वालों के शरीर में डीएनए रिपेयर की क्षमता प्रभावित हो सकती है। इस शोध को भारतवंशी समेत वैज्ञानिकों के दल ने पूरा किया।
वैज्ञानिकों ने बताया कि क्षतिग्रस्त डीएनए की सही से मरम्मत न होने और ऐसी कोशिकाओं के बढ़ने से कई गंभीर बीमारियों होने की आशंका रहती है। इन खतरों से बचने के लिए नाइट शिफ्ट में काम करने वालों को मेलाटोनिन का सप्लीमेंट दिया जाना बेहतर विकल्प हो सकता है।
वैज्ञानिकों ने बताया कि नाइट शिफ्ट करने से शरीर में नींद से जुड़े हार्मोन मेलाटोनिन का स्राव बाधित होता है। शरीर में क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत की क्षमता भी कम हो जाती है। रात में काम करने वालों में डीएनए टिश्यू रिपेयर के रासायनिक प्रति उत्पाद 8-ओएच-डीजी का स्तर भी कम पाया गया।
वॉशिंगटन स्थित फ्रेड हचिंसन कैंसर रिसर्च सेंटर के प्रवीण भट्टी ने कहा, “8-ओएच-डीजी के कम स्तर का संबंध मेलाटोनिन के कम स्राव से जुड़ा है। इसका कम स्तर इस बात का प्रमाण है कि शरीर क्षतिग्रस्त डीएनए की मरम्मत सही प्रकार से नहीं कर पा रहा है। इससे शरीर में ऐसी कोशिकाओं की संख्या बढ़ने की आशंका रहती है, जिनमें डीएनए क्षतिग्रस्त हों।”