उसी वक़्त उस रास्ते से स्वर्ग के अप्सराओं की रानी रंभा रावण के भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने जा रही थी। रास्ते में रावण की नज़र उस पर पड़ी और वह रंभा के रूप और सौंदर्य को देखकर मोहित हो गया। रावण ने रंभा को बुरी नीयत से रोक लिया। अपनी इच्छा पूर्ति के उद्देश्य से रावण ने अपना परिचय दिया और उसने अपने सामने रंभा से सौंदर्य प्रदर्शन को कहा।
इस पर रंभा ने रावण से उसे जाने देने की प्रार्थना की और कहा कि आज मैंने आपके भाई कुबेर के पुत्र नलकुबेर से मिलने का वचन दिया है। मैं आपकी पुत्रवधू के समान हूं। इसलिए मुझे छोड़ दीजिए और जाने दीजिए। पर उस अनुनय-विनय का रावण पर कोई असर नहीं पड़ा। रावण काम-वासना के नशे में ऐसा चूर हो गया कि उसे रिश्तों का भी ख्याल नहीं रहा और उसने रंभा के साथ जबरदस्ती की और उसके शील का हरण कर लिया।