वैसे इस क्षेत्र में बौनों को देखे जाने की खबरें 1911 से ही आती रही है। 1947 में एक अंग्रेज वैज्ञानिक ने भी इस इलाके में सैकड़ों बौनों को देखने की बात कही थी, पर आधिकारिक तौर इस बीमारी का पता 1951 में चला जब प्रशासन को आचानक कई पीडि़तों के अंग छोटे होने की शिकायत मिलने लगी। इस गांव के बारे अधिकतर जानकारी यहां पहुंच पाने वाले रिपोर्टर्स के द्वारा ही मिल पाती है क्योंकि चीनी प्रशासन किसी भी विदेशी रिपोर्टर को इस गांव में जाने की इजाजत नहीं देता।

वैज्ञानिक और विशेषज्ञ इस गांव की मिटटी, पानी, अनाज आदि का कई बार अध्ययन कर चुके हैं, लेकिन वो इस स्थिति का कारण खोजने में अबतक विफल रहे हैं। 1997 में इस बीमारी का कारण गांव की जमीन में मौजूद पारा को बताया गया, पर वैज्ञानिक इसे साबित नहीं कर सके।

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