एक बात और है कि अगर किसी खिलाड़ी को उसका डॉक्टर ऐसी दवाईयों को लेने की सलाह देता है तो वह इसका इस्तेमाल कर सकता है इसे डोपिंग या खेल के नियम को तोड़ना नहीं कह सकते हैं। शायद अगर मैक नहीं जीततीं तो ये अफवाहें नहीं उठतीं। ये बात भी सही ही कहा गया है कि किसी की कामयाबी बहुत लोगों को हजम नहीं हो पाती है। अब विवाद बनाने के लिए कुछ तो चाहिए ही। कोई ट्रांसजेडर गोल्ड मेडल कैसे जीत सकता है? उसके अंदर तो कोई क्वालिटी ही नहीं होती है। कुछ लोगों के दिमाग में अभी भी यही बात घर बनाए हुए है।
ट्रांसजेंडर के भी कई सारे ऐसे उदाहरण हैं जिन्हें खंगाला जाए तो दर्जनो भर सफलता की कहानीयां बन जाएंगी। प्रशासन को भी जब कुछ नहीं मिला तो खेल में एक नया नियम जोड़ दिया कि जो जिस जेंडर के साथ पैदा हुआ है वह उसी वर्ग के लोगों के साथ खेलेगा। हम कहते हैं कि अगर किसी महिला को भी पुरूष वर्ग के साथ कुश्ती लड़ने का जज्बा है, उसे अपनी काबिलियत पर भरोसा है तो उसे खेलने देना चाहिए। यहां तो बात ट्रांसजेंडर की थी जिसने पूरी तरह से जेंडर चेंज करा लिया था।