बताया जाता है कि 14वीं और 15वीं शताब्दी में यहां प्लेग और युद्धों के कारण बहुत अधिक मौतें हुई और उनमें से अधिकतर को सेडलेक में ही दफन कर दिया गया। इस तरह यहां कुछ ही समय में बहुत ही अधिक लोगों को दफना दिया गया जिससे की कब्रिस्तान में जगह ही नहीं बची। तब यहां पर एक ऑस्युअरी बनाने का खयाल आया। ऑस्युअरी बनने के बाद में यहां के संत लोगों की हड्डियों को निकाल कर चर्च में रख देते थे।
1870 में करीब 40000 लोगों की इन हड्डियों को कलात्मक रूप से सजाया गया। शीघ्र ही यह चर्च अपनी खूबसूरती के लिए प्रसिद्ध हो गया। बता दें कि हर साल इस चर्च को देखने दुनिया भर से करीब 2 लाख से ज्यादा लोग आते हैं।
कुछ लोगों को यहां पर आकर डर भी लगता है, वहीं कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्हें यहां पर आकर शांति और सुकून का अहसास होता है। इसे चर्च ऑफ बोन्स यानी हड्डियों से बने चर्च के तौर पर भी जाना जाता है।