सखाराम भगत की तीन शादियां हो चुकी हैं। तीनों पत्नियां एक ही घर में साथ-साथ रहती हैं। इनकी पहली पत्नी से छह बच्चे हैं। अगर इनकी पत्नी का सारा समय बच्चों की देखभाल और घर के अन्य कामों में ही बीत जाए, तो पानी कैसे आएगा? इसी कारण से सखाराम ने दूसरी शादी की। एक औरत 15 लीटर पानी ही ला पाती है, जो 9 लोगों के परिवार में कम पड़ जाता था, इस कारण सखाराम ने तीसरी शादी भी कर ली। मतलब कुल मिलाकर देखा जाए तो ‘डिजिटल इंडिया’ के जमाने में यहां औरतें मशीन की तरह हैं। पानी भी ढोती हैं बच्चे भी पैदा करती हैं और घर भी सम्हालती हैं।
हांलाकि कई शादियां करने से कई तलाकशुदा औरतों को एक औरत होने का दर्ज़ा मिला है। उन्हे नया परिवार मिला है। उनके ख़ुद के समाज में सम्मान मिला है। जिन औरतों के पति छोड़ दिए या उनका तलाक हो गया उनकी शादियां यहां आसानी से हो जाती हैं। लेकिन ऐसी शादी का क्या फायदा जहां औरत को एक मशीन बना के रखा जाता हो। देश के लोगों की ये मानसिकता आज भी बनी हुई है कि पत्नी ही बस घर का काम करेगी। इस तरह की मानसिकता पह भी बैन लग जाए तब जाकर देश कहीं सुधरेगा।