सीधी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के मुताबिक, जिले में कोई भी शव वाहन नहीं है। एक स्थानीय एमएलए ने एमएलए फंड से वाहन दिया है, वही पूरे जिले में इस्तेमाल हो रहा है। वहीं स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों का कहना है कि बीते 18 सितंबर को स्वास्थ्य मंत्री ने ऐलान किया था कि एम्बुलेंस शवों को ले जाने के लिए नहीं हैं, जिसके बाद से सरकारी अस्पताल ऐसी कोई व्यवस्था करने से पीछे हट गए हैं।
दरअसल राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रुस्तम सिंह ने घोषणा की थी कि सरकारी एम्बुलेंस, जननी एक्सप्रेस और 108 एम्बुलेंस सर्विस का इस्तेमाल शव ले जाने के लिए नहीं हो सकता। उनकी इस घोषणा के बाद राज्य में गरीबों की समस्या बढ़ गई है। अब ग्रामीण इलाकों में सरकारी अस्पताल गरीबों को न तो एम्बुलेंस की सुविधा दे रहे हैं और न ही शव को घर भेजने में मदद कर रहे है। सोमवार की यह घटना इसी का नतीजा है।
इस घटना ने राज्य की सरकारी व्यवस्था का एक निर्दयी चेहरा सामने ला दिया है। गरीबों के लिए तमाम योजनाओं की घोषणा करने वाली शिवराज सरकार के किसी विभाग ने इनकी मदद नहीं की। जिसके बाद मजबूरी के कारण बेटों को पिता का शव कपडे़ में लपेटकर बांस से लटकाना पड़ा।