42 वर्ष के इम्तियाज हुसैन पैरी सबसे पहले मंदिर आए और उन्होंने यहां से पंडितों को भाईचारे का संदेश दिया। वर्ष 1990 में कश्मीरी पंडितों को मजबूर होकर अपना घर और काम छोड़कर कश्मीर से जाना पड़ गया था। पैरी ने टोपी पहनी हुई थी और उन्होंने सबसे पहले मंदिर की सफाई की और फिर शिवलिंग पर फूल और फल चढ़ाए। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने तरीके से साधारण पूजा की क्योंकि वह मुसलमान हैं और उन्हें नहीं मालूम कि हिंदू पूजा कैसे की जाती है।
नंद किशोर मंदिर झेलम नदी के तट पर स्थित है और कश्मीर में इस मंदिर को नंदराजा मंदिर भी कहते हैं। यहां पर एक पवित्र शिवलिंग है जिसे एक बड़े से चिनार की डाली पर रखा गया है और यह पेड़ मंदिर की छत तक जाता है।
स्थानीय निवासियों का कहना था कि कश्मीर हमेशा से रिवायती भाईचारे का प्रतीक रहा है और कश्मीरी पंडित हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं। उनके बिना हम अधूरे हैं और हमारे बिना वे। इसलिए हम चाहते हैं कि वह लोग वापिस आएं ताकि वह रिवायती भाईचारा फिर से कायम हो और अगली शिवरात्रि हम एक साथ मनाएं।