यह प्रथा रसिया बालम की प्रेमकथा से जुड़ी है, कहा जाता है कि माउंट में अघोरी रसिया बालम को राजकुमारी कुंवारी कन्या से प्रेम हो गया। वह विवाह की अनुमति लेने के लिए राजा के यहां पहुंचा, जहां रानी ने शर्त रखी कि वह अपनी छोटी उंगली के नाखून एक रात में झील खोदकर दिखाए। रसिया बालम ने अपनी तप शक्ति से ब्रह्मकाल तक लगभग झील को खोद दिया था। यही झील अब नक्की कहलाती है।

आदिवासियों की इस परंपरा के पीछे यहां सदियों पहले हुई कुंवारी कन्या और रसिया बालम की प्रेमकथा से जुड़ी है। कुंवारी कन्या और रसिया बालम की प्रेम कथा को लेकर आदिवासी समाज के लोग आज भी यहां स्वयंवर करते हैं और देलवाड़ा मंदिर के पीछे जंगल में बने उनके मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करते हैं।

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