पैसे आदि दिए जा चुके थे। मुझे तो सिर्फ मन बहलाव ही करना था। मैं उस घर में चला तो गया लेकिन ईश्वर जिसे बचाना चाहता है, उसको बचा ही लेता है। उस कोठरी में पहुंचकर जैसे मेरी आंखों की ज्योति ही चली गई। मेरे मुहं से एक शब्द भी नहीं फूटा। मैं शर्म के सन्नाटे में आकर उस औरत के पास खाट पर बैठा लेकिन कुछ बोल नहीं सका। वह गुस्से में आ गई। उसने मुझे दो-चार खरी खोटी सुनाई और दरवाजे की राह दिखा दी। उस समय तो ऐसा लगा मानो मेरी मर्दानगी पर बट्टा लग गया हो। उस समय महसूस हुआ कि अगर धरती फट जाए तो मैं उसमें ही समा जाऊं। किंतु उसके बाद सदा ही मैंने अपने इस तरह बच जाने के लिए ईश्वर को धन्यवाद दिया है।
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