लॉज़ेन यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल में न्यूरोसर्जन जोसलिन बलोच ने बंदरों की सर्जरी कर उनमें ब्रेन एंड स्पानल कॉर्ड इंप्लांट्स लगाए थे। उन्होंने बताया कि मस्तिष्क की डिकोडिंग और रीढ़ की हड्डी की उत्तेजना के बीच ऐसा लिंक बनाना, जिससे संचार हो सके, वह पूरी तरह से नया है।

बलोच ने कहा कि पहली बार मैं कल्पना कर पा रहा हूं कि इस ब्रेन-स्पाइन इंटरफेस के जरिए पूरी तरह से लकवाग्रस्त व्यक्ति अपने पैरों पर चल सकेगा। प्रोफेसर ग्रेगोरी कोर्टाइन स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में एक न्यूरोसाइंटिस्ट हैं। इस थैरेपी का नेतृत्व करने वाले कोर्टाइन ने कहा कि अभी आगे कई प्रमुख चुनौतियां हैं। इंसानों के लिए यह चिकित्सा उपलब्ध होने में कई साल लग सकते हैं।

 

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