भारत में महिलाएं पीरियड्स जैसे गंभीर विषयों पर आज भी खुलकर बात नहीं कर पाती हैं। वक्त के साथ इनमें बदलाव जरुर आना चाहिए। डब्लयू डी के मुताबिक महिलाएं खुद इसका नाम लेकर बात नहीं करती। इसके लिए कई तरह के सांकेतिक नामों का प्रयोग होता है। भारत में भी इसे लड़कियां बताने के लिए कई सारे मजाकिया नामों जैसे एमसी, डाउन होना, डेट आना, बॉस कॉलिग, चम्प्स आदि जानती और बताती है।
इसके अलावा इस बारे में चर्चा करना भी एक शर्म का विषय हो जाता है तो इस बारे में बातें भी दबी जुबान ही होती है। आज भी महिलाएं अगर गलती से दाग लग जाएं तो इसके लिए खुद तो शर्मिदां होती ही हैं साथ ही लोग भी इसके लिए टोकने के अलावा शर्मिदा महसूस करवाते हैं। ये उनके जीवन का एक हिस्सा है जिसके लिए आज भी उन्हें जरुरी चीजें मुहिया नहीं हो पाती जैसे शौचालय, पानी, साबुन और पेड और शर्मिदगी भी उसके साथ जुड़ जाती है, ये काफी चिंताजनक है।
शोध के मुताबिक भारत में 10 फीसदी और ईरान में 50 फीसदी लड़कियां इसे एक बीमारी की तरह देखती हैं। रोजाना पूरी दुनिया में 15 से 49 साल की 80 करोड़ महिलाएं पीरियड्स में होती है। लगभग सवा अरब लड़कियों को शौचालय की सुविधा ही उपलब्ध नहीं होती जिस वजह से कई लड़कियों का स्कूल तक छूट जाता है क्योंकि इस दौरान वो स्कूल नहीं जा पाती।